१.
मैं चाहता हूँ
शाम भी सुबह सा दिखूं
पहचान सकूँ खुद को।
मैं चाहता हूँ
मैं मैं रहूँ, तुम तुम रहो, पूरे दिन।
२.
मैं चाहता हूँ
ठण्ड कम होते, परिंदे लौट जाएं
वापस हों अपने घर अपने वतन।
मैं चाहता हूँ
मेरे अपने भी प्रवास से लौंटें।
३.
मैं चाहता हूँ
मूक स्वर, विस्मृत लिपि से परे
टिक सकें भावनाएं।
मैं चाहता हूँ
कोई भी बोली, गाए प्रेम गीत ही।
मैं चाहता हूँ
शाम भी सुबह सा दिखूं
पहचान सकूँ खुद को।
मैं चाहता हूँ
मैं मैं रहूँ, तुम तुम रहो, पूरे दिन।
२.
मैं चाहता हूँ
ठण्ड कम होते, परिंदे लौट जाएं
वापस हों अपने घर अपने वतन।
मैं चाहता हूँ
मेरे अपने भी प्रवास से लौंटें।
३.
मैं चाहता हूँ
मूक स्वर, विस्मृत लिपि से परे
टिक सकें भावनाएं।
मैं चाहता हूँ
कोई भी बोली, गाए प्रेम गीत ही।
खुबसूरत अभिवयक्ति......
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